नाले से फिर कब नदी बनेंगी ‘सरायन’ और ‘पेरई’, नाले की वजह से अब नहीं आ रहा शारदा व बनबसा से पानी!

सीतापुर। 5 जून यानी पर्यावरण दिवस के अवसर पर  हम नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर अगर बात करें तो  हालात बेहद चिंतनीय हैं। नदियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं और इन पर सिर्फ और सिर्फ राजनीति हो रही है। सरकार का करोड़ों रुपया पानी में बहकर बर्बाद हो रहा है लेकिन ना तो नदियों की सफाई हो रही है और ना ही पर्यावरण पर कोई काम हो रहा है। ऐसी ही कुछ स्थिति सीतापुर शहर की दो प्रमुख नदियां रही सरायन और पेरई  ही की है। जो आज नाले में तब्दील हो चुकी है।

दरअसल नाले में तब्दील करने का काम कागजों पर तो प्रशासन ने किया लेकिन इसकी शुरुआत आम लोगों ने इन नदियों को प्रदूषित करके की थी। जिसके बाद प्रशासन और भू माफिया के गठजोड़ ने सीतापुर कि इन दो नदियों पर ग्रहण लगा दिया। लिहाजा नदियां नाले में परिवर्तित हो चुकी हैं और इनमें बेरोकटोक घरों का गंदा पानी बहाया जा रहा है। जिससे वह दिन दूर नहीं सीतापुर शहर में लोग पानी के लिए त्राहिमाम करेंगे। आज जहां लोग सीतापुर शहर में स्वच्छ जल पाने के लिए 150 मीटर की बोरिंग कराते हैं और उनको पानी मिलना शुरू शुरू हो जाता है। वही आने वाले कुछ वर्षों में यह स्तर 200 मीटर से ज्यादा पहुंच जाएगा। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है क्योंकि एक तरफ जहां पहाड़ों से आने वाले पानी की आवक सीतापुर शहर की इन नदियों में नहीं है। सीतापुर में इन दोनों नदियों के नाले के रूप में परिवर्तित होने के बाद शारदा और बनबसा डैम से सीतापुर कि इन दोनों नदियों को पानी भेजा जाना बंद कर दिया गया है। तो इस लिहाज से आने वाला समय सीतापुर में स्वच्छ जल के लिए बेहद कठिन होगा। इस पर ना किसी स्वयंसेवी संगठन की तरफ से कोई पहल की जा रही है और ना ही आम लोग जागरूक हो रहे हैं। सिर्फ और सिर्फ राजनीति होती रही है और भूमाफिया इसका जमकर फायदा उठाते रहे। स्थितियां तो तब हतप्रभ रही जब इन नदियों के किनारे लोगों के मकान, रहने के लिए एक बड़ी कालोनी का निर्माण होता रहा और प्रशासन मूक दर्शक बना देखता रहा। जिन निर्माणों पर रोक लगाई जानी चाहिए थी उनके नक्शे बिना किसी कागजी पूर्ति के पास होते रहे और नदियों के अस्तित्व को खत्म किया जाता रहा। यही नही बीते कुछ वर्षों में सीतापुर शहर की सरायन नदी को पुनर्जीवित करने के लिए शासन की तरफ से एक बड़ी धनराशि आवंटित की गई। यही नहीं सीतापुर शहर के सदर विधायक राकेश राठौर ने भी इसको लेकर काफी प्रयास किया। कई महीने तक नदियों की सफाई जेसीबी मशीन द्वारा कराई जाती रही। सरायन नदी में गंदगी कोई न डाल सके इसके लिए मुख्य मार्ग के दोनों तरफ बड़ी-बड़ी लोहे की जालियां लगवाई गई लेकिन नतीजे आज के वक्त में सब ढाक के तीन पात के बराबर हैं। वहीं पूर्व में ही सीतापुर शहर के नगर पालिका अध्यक्ष रहे आशीष मिश्रा के द्वारा भी खुद नदी में उतर कर उसकी सफाई के लिए अपने एक संगठन के जरिए पहल की गई। इस पर भी तमाम प्रयास हुए। लोगों का भारी भरकम जमावड़ा नदियों में उतर कर सफाई करता दिखाई दिया। जेसीबी मशीन में जलकुंभी हटाई लेकिन कुछ दिन बाद ही सारे प्रयास धरे के धरे दिखाई दिए। आखिर क्या करना होगा जिससे सीतापुर शहर की इन दोनों नदियों के अस्तित्व को बचाया जा सके? इसको लेकर क्या प्रयास होने चाहिए? जिला प्रशासन से लेकर उत्तर प्रदेश शासन तक किन पत्रावली पर कार्य किया जाना चाहिए? इन सब को लेकर एक संगठनात्मक तरीके से पहल होनी चाहिए। हालांकि पूर्व में ही जिलाधिकारी अखिलेश तिवारी ने बताया था कि बायो- रेडिएशन के जरिए नदी के जल की सफाई का काम कराया जाएगा। जल निगम ने इसके लिए सर्वे कार्य भी पूरा कर लिया है। इसके लिए उसे कुछ भूमि की आवश्यकता पड़ेगी, जिसे प्रशासन उपलब्ध कराएगा। लेकिन यह बात भी सिर्फ एक जुमला साबित हुई और कोई भी कार्य जमीन पर नहीं होता दिखाई दिया।

सरायन व पेरई नदियों का इतिहास
सीतापुर। सरायन व पेरई नदी गोमती नदी से ही निकली हुई उसकी सहायक नदियां हैं। सीतापुर में सरायन नदी एलिया ब्लॉक में सबसे पहले आती है और इसके बाद वह सीतापुर शहर होते हुए एक लंबी दूरी तय करती है। बात अगर पेरई नदी की करे तो गोमती की सहायक नदी सरायन से निकली हुई नदी है पेरई नदी। जो सीतापुर शहर के शाहजहांपुर बाईपास के आगे से निकलती हुई रामकोट तक जाती है। पहले इसमें लोगों द्वारा गंदा पानी और मलबा डाला गया और फिर उसकी गंदगी दिखाकर जिला प्रशासन से  गठजोड़ कर भूमाफिया द्वारा शासन से नदी को नाला घोषित करा दिया गया।

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