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अमेरिका के ईरान पर हमले पर कांग्रेस का हमला: “भारत चुप क्यों है?” अशोक गहलोत और इमरान मसूद ने उठाए सवाल

नई दिल्ली। 22 जून को अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों पर हमला कर दुनिया भर में तनाव बढ़ा दिया है। इस हमले की वैश्विक स्तर पर आलोचना हो रही है। भारत सरकार की चुप्पी को लेकर विपक्ष ने सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस नेता अशोक गहलोत और सांसद इमरान मसूद ने केंद्र सरकार की विदेश नीति पर नाराजगी जताई है और भारत से स्पष्ट रुख अपनाने की मांग की है।

गहलोत ने सरकार पर उठाए सवाल: “भारत कुछ बोल क्यों नहीं पा रहा?”

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने कहा:

“आज देखिए दुनिया में क्या हो रहा है? ईरान और इजरायल का युद्ध हो रहा है, जिसमें अमेरिका भी कूद गया है। लेकिन भारत सरकार कुछ बोल नहीं पा रही।”

उन्होंने भारत की विदेश नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि इंदिरा गांधी के दौर में शुरू हुआ गुटनिरपेक्ष आंदोलन देश की पहचान था, और आज वही सोच गायब होती दिख रही है।

“हमारा मित्र रूस भी ऑपरेशन सिंदूर के समय चुप था। हमें दुनिया में जो सम्मान और अलग पहचान थी, वह आज कमजोर हो रही है। ऐसे वक्त में भारत को दुनिया को यह दिखाना चाहिए कि उसकी विदेश नीति स्पष्ट और मजबूती से खड़ी है।”

“हमें ईरान के साथ खड़ा होना चाहिए” – इमरान मसूद

कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने भी अमेरिका के हमले की निंदा की और भारत की चुप्पी पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा:

“ईरान हमारा पुराना दोस्त है। हमारे व्यापारिक और सांस्कृतिक रिश्ते गहरे हैं। ईरान ने हर मौके पर भारत का साथ दिया है। हमें इस वक्त उसके साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए।”

“अमेरिका की दादागिरी है यह हमला”

इमरान मसूद ने कहा:

“ईरान ने हमला नहीं किया, उस पर हमला हुआ है। वह पहले ही कह चुका था कि उसके न्यूक्लियर प्रोग्राम अंतरराष्ट्रीय निगरानी में हैं। उसके बावजूद अमेरिका का हमला करना सीधे तौर पर दादागिरी है।”

उन्होंने इस पर भारत सरकार की चुप्पी को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि भारत को अमेरिकी दबाव के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।

कांग्रेस ने दोहराई गुटनिरपेक्ष नीति की जरूरत

कांग्रेस नेताओं का मानना है कि वर्तमान सरकार की विदेश नीति भ्रमित करने वाली है और अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत की निष्क्रियता से देश की प्रतिष्ठा को नुकसान हो रहा है। गहलोत ने कहा कि आज फिर से कांग्रेस की नीतियों की जरूरत है, जिससे भारत वैश्विक नेतृत्व में संतुलन की भूमिका निभा सके।

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