जस्टिस शेखर यादव पर महाभियोग प्रस्ताव फंसा तकनीकी पेंच में, राज्यसभा में 54 सांसदों ने दिया था नोटिस

लखनऊ /इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस शेखर यादव इन दिनों गंभीर विवाद में घिरे हुए हैं। विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में दिए गए उनके विवादास्पद बयान के बाद राज्यसभा के 54 सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दाखिल किया था। हालांकि यह प्रस्ताव तकनीकी खामियों के चलते संसद की प्रक्रिया में फंसा हुआ है और अभी भी राज्यसभा के सभापति के समक्ष लंबित है।
क्या है पूरा मामला?
जस्टिस यादव ने एक धार्मिक मंच पर बयान देते हुए कुछ ऐसे शब्द कहे थे, जिन्हें लेकर न्यायिक निष्पक्षता और न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल खड़े हुए। विपक्षी दलों ने इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान के खिलाफ बताते हुए राज्यसभा में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने का निर्णय लिया।
50 साइन जरूरी, अब तक 44 का वेरिफिकेशन
राज्यसभा सचिवालय के अनुसार, महाभियोग प्रस्ताव को विधिपूर्वक स्वीकार करने के लिए कम से कम 50 सांसदों के सत्यापित हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं। हालांकि अभी तक केवल 44 सांसदों के हस्ताक्षरों का वेरिफिकेशन हो पाया है। बाकी 10 में से 6 सांसदों ने मौखिक रूप से साइन की पुष्टि तो की है, लेकिन लिखित सत्यापन की प्रक्रिया अभी भी अधूरी है।
सांसदों से की गई ईमेल और कॉल के ज़रिए पुष्टि
राज्यसभा सचिवालय ने मार्च और मई 2025 में संबंधित सांसदों को ईमेल और फोन कॉल के माध्यम से संपर्क किया था ताकि उनके हस्ताक्षरों की पुष्टि करवाई जा सके। मगर संसदीय नियमों के तहत जब तक हर एक हस्ताक्षर एक विशेष प्रारूप में विधिपूर्वक सत्यापित नहीं हो जाते, तब तक प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं मिल सकती।
एक सांसद के दो हस्ताक्षर, जांच में पेंच
महाभियोग प्रस्ताव से जुड़ी प्रक्रिया में एक नया मोड़ तब आया जब एक सांसद के दो बार हस्ताक्षर करने की शिकायत सामने आई। इस शिकायत के बाद प्रस्ताव से जुड़े सभी 55 हस्ताक्षरों की गहन जांच शुरू की गई है। राज्यसभा सचिवालय के सूत्रों के मुताबिक, एक सांसद ने दोबारा साइन करने से इनकार कर दिया है, जिससे मामला और उलझ गया है।
1920 सिग्नेचर यूनिट्स का पुनः सत्यापन बाकी
जानकारी के अनुसार, कुल 1920 हस्ताक्षर इकाइयों का दोबारा सत्यापन अभी भी लंबित है। अगर किसी भी प्रकार की तकनीकी खामी—जैसे डुप्लिकेट साइन, नाम में गलती या फॉर्मेट में त्रुटि पाई गई, तो पूरा प्रस्ताव तकनीकी आधार पर खारिज हो सकता है।