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भाषा विवाद पर अमित शाह का जवाब: “हिंदी सभी भारतीय भाषाओं की सखी है, कोई दुश्मन नहीं”

नई दिल्ली।तमिलनाडु में हाल ही में उभरे भाषाई विवाद के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान सामने आया है। मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन द्वारा “एक और भाषा युद्ध” के लिए तैयार रहने की बात कहे जाने के बाद शाह ने स्पष्ट किया कि हिंदी किसी भारतीय भाषा की विरोधी नहीं है, बल्कि सभी भारतीय भाषाओं की मित्र (सखी) है।

अमित शाह ने कहा कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा है। हमें गुलामी की मानसिकता से निकलने के लिए अपनी भाषा में सोचने और बोलने की आदत डालनी होगी।

हिंदी: न प्रतिस्पर्धा में, न प्रभुत्व में

गृह मंत्री ने कहा,“हिंदी किसी भारतीय भाषा की दुश्मन नहीं हो सकती, वह सभी भाषाओं की सखी है।”

उन्होंने बताया कि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं मिलकर देश को आत्मनिर्भरता और संस्कृति के पुनरुत्थान की ओर ले जा सकती हैं।

भाषा को लेकर आग्रह जरूरी, विरोध नहीं

शाह ने जोर देते हुए कहा,“किसी भाषा या विदेशी भाषा का विरोध नहीं होना चाहिए। लेकिन हमें अपनी भाषा को सम्मान देना चाहिए, उसे बोलने और उसमें सोचने का आग्रह होना चाहिए।”

भाषा और राष्ट्र की आत्मा का रिश्ता

गृह मंत्री ने भाषाई विमर्श को राष्ट्रवाद से जोड़ते हुए कहा,“भाषा राष्ट्र की आत्मा है। जब तक हम अपनी भाषा में अभिव्यक्ति नहीं करेंगे, तब तक हम गुलामी की मानसिकता से मुक्त नहीं हो सकते।”

प्रशासन में भारतीय भाषाओं का बढ़ता उपयोग

शाह ने बताया कि सरकारी कामकाज में अब भारतीय भाषाओं का इस्तेमाल बढ़ाया जा रहा है।

“अब JEE, NEET, CUET जैसी परीक्षाएं 13 भाषाओं में ली जा रही हैं। CAPF कांस्टेबल भर्ती भी अब कई भाषाओं में हो रही है। इसका फायदा यह हुआ है कि **95% छात्र अब अपनी मातृभाषा में परीक्षा दे रहे हैं।”

उन्होंने इसे भारतीय भाषाओं के उज्जवल भविष्य का संकेत बताया।

राज्यों से संवाद और तकनीकी सहयोग

गृह मंत्री ने यह भी कहा कि राज्य सरकारों को भी राजभाषा के प्रयोग के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसके लिए

  • तत्काल अनुवाद के सॉफ्टवेयर विकसित किए जा रहे हैं।
  • प्रशासनिक कार्यों में अनुवाद की सुविधा भी बढ़ाई जा रही है।

2047 तक भाषाई आत्मनिर्भरता का लक्ष्य

शाह ने प्रधानमंत्री मोदी के विज़न का जिक्र करते हुए कहा,“2047 में जब देश आजादी के 100 वर्ष पूरे करेगा, तब तक हम भारतीय भाषाओं को इतना समृद्ध कर देंगे कि वे भारत को एकजुट रखने की सबसे मजबूत कड़ी बन जाएंगी।”

पृष्ठभूमि: तमिलनाडु में भाषा को लेकर विवाद

हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया था कि वह हिंदी को थोपने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा था कि “तमिलनाडु एक और भाषा युद्ध के लिए तैयार है।”

इस बयान के बाद राजनीतिक तापमान बढ़ गया और यह मुद्दा संसद और मीडिया में भी गरमाया रहा। अमित शाह का यह बयान एक संयमित लेकिन स्पष्ट संदेश के तौर पर देखा जा रहा है।

अमित शाह ने साफ शब्दों में कहा कि भारत में भाषाओं का स्थान समता और सौहार्द्र का होना चाहिए, न कि प्रतियोगिता या वर्चस्व का। उनका भाषण हिंदी के समर्थन में था, लेकिन यह अन्य भाषाओं के सम्मान को नकारने वाला नहीं, बल्कि उन्हें साथ लेकर चलने की सोच का प्रतीक था।


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