उत्तर प्रदेश में स्कूल मर्जर पर बड़ा बयान, शिक्षा मंत्री संदीप सिंह बताया क्यों लिया गया ये निर्णय

उत्तर प्रदेश में स्कूलों के विलय (मर्जर) को लेकर मचे सियासी और सामाजिक घमासान के बीच बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह ने आज गुरुवार को स्थिति साफ की। उन्होंने कहा कि स्कूलों का मर्जर छात्र-शिक्षक अनुपात सुधारने के लिए किया जा रहा है, जिससे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके।
क्या बोले संदीप सिंह?
संदीप सिंह ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत उठाया गया है। सरकार का उद्देश्य परिषदीय स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाना है। “जो भी भवन खाली होंगे, उनमें प्री-प्राइमरी (बाल वाटिका) की शुरुआत की जाएगी,” उन्होंने कहा।
NEP के अनुरूप हो रहा काम
बेसिक शिक्षा मंत्री के अनुसार, बीते आठ वर्षों में शिक्षा विभाग ने मूलभूत सुविधाओं में भारी निवेश किया है। 2017 से पहले कई स्कूलों में शौचालय, बिजली, पीने का पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं थीं, लेकिन अब 11,500 करोड़ रुपये की लागत से 19 विभिन्न बिंदुओं पर सुधार किया गया है।
अन्य राज्यों में पहले हो चुका है मर्जर
संदीप सिंह ने साफ किया कि स्कूलों का पेयरिंग या मर्जर उत्तर प्रदेश में पहली बार नहीं हो रहा है। इससे पहले राजस्थान में 20,000, मध्यप्रदेश में 36,000, ओडिशा में 1,200 और हिमाचल प्रदेश में भी हजारों स्कूलों का मर्जर किया जा चुका है। यूपी में अब तक 10,000 स्कूलों की पेयरिंग की जा चुकी है।
मर्जर के नियम क्या हैं?
- केवल कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को मर्ज किया गया है।
- मर्जर की प्रक्रिया अधिकतम 1 किलोमीटर के दायरे में की जा रही है।
- यदि किसी स्थान पर छात्रों को असुविधा होती है, तो स्कूलों को तत्काल ‘अनपेयर’ कर दिया जाएगा।
- कोई भी शिक्षक पद समाप्त नहीं किया जाएगा।
बच्चों की सुविधा सर्वोपरि
मंत्री ने कहा कि “हमारा उद्देश्य बच्चों को बेहतर शिक्षा देना है। 1 किमी के भीतर स्कूल मर्ज करने से बच्चों की शिक्षा बाधित नहीं होगी, बल्कि शिक्षकों की उपस्थिति और संसाधनों की उपलब्धता बेहतर होगी।”
जल्द पूरी होगी प्रक्रिया
संदीप सिंह ने बताया कि अगले एक सप्ताह में स्कूलों की पेयरिंग की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। कुछ जगहों पर जहां ज़रूरत महसूस हुई, वहां ‘अनपेयरिंग’ भी शुरू कर दी गई है।