उत्तर प्रदेश

वाराणसी: साधु-संतों को नोटिस पर भड़के ज्योतिषपीठ शंकराचार्य, बोले– अब आशीर्वाद वापसी पर विचार का समय

वाराणसी। ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती काशी स्थित मठ में वेद विद्या से जुड़े एक कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे। इस दौरान उन्होंने वाराणसी में साधु-संतों को नगर निगम द्वारा भेजे गए नोटिस को लेकर कड़ी नाराजगी जताई और सरकार पर तीखा हमला बोला।

शंकराचार्य ने कहा कि

“अब समय आ गया है कि इस बात पर विचार किया जाए कि सत्ता पर आशीर्वाद बनाए रखना है या अब हाथ हटाने का समय आ गया है।”

नोटिस भेजने पर जताई आपत्ति

नगर निगम द्वारा मठों और मंदिरों से जुड़े साधु-संतों को नोटिस भेजे जाने को लेकर उन्होंने कहा—

“मठ-मंदिर वालों ने ही आशीर्वाद दिया था, अब उसका फल भोगो। गलत आदमी को आशीर्वाद देंगे तो क्या होगा? भस्मासुर को भगवान शिव ने वरदान दिया तो क्या हुआ?”

उन्होंने आगे कहा कि

“भस्मासुर वही है जो आज मठों और मंदिरों को नोटिस भेज रहा है। जिनसे आशीर्वाद लेकर सत्ता में आया, उन्हीं को नोटिस भेजना भस्मासुर वाला काम है।”

सरकार पर साधा निशाना

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि संत समाज इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठेगा।

“हम संत समाज के साथ हैं। सनातनी समाज जहां होगा, हम वहां खड़े दिखाई देंगे।”

आशीर्वाद वापसी पर सम्मेलन का ऐलान

उन्होंने बताया कि 10–11 मार्च को दिल्ली में एक बड़ा संत सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।

“जैसे राजनीतिक पार्टियां समर्थन वापसी पर विचार करती हैं, वैसे ही अब संत समाज को भी आशीर्वाद वापसी पर विचार करना चाहिए कि यह आशीर्वाद इनके साथ रहे या वापस लिया जाए।”

मनरेगा का नाम बदलने पर आपत्ति

मनरेगा योजना के नाम बदलने के मुद्दे पर शंकराचार्य ने कहा कि

“योजनाएं किसी के नाम पर हों, हमें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन ‘तीर्थ’ शब्द का सरकारी योजनाओं या कार्यालयों के नाम से इस्तेमाल गलत है। प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम तीर्थ के नाम पर नहीं हो सकता।”

बांके बिहारी मंदिर के बाल भोग विवाद पर बयान

बांके बिहारी मंदिर में बाल भोग लगाने में हुई देरी को लेकर भी उन्होंने चिंता जताई।
शंकराचार्य ने कहा—

“आज पहली बार परंपरा टूटी है, आगे हजार बार टूटेगी। हमने पहले ही कहा था कि धर्मस्थल धार्मिक लोगों के हाथ में होने चाहिए।”

उन्होंने चेतावनी दी कि अगर धर्मस्थलों में सरकारी दखल बढ़ा तो परंपराएं लगातार टूटेंगी।

“सरकारी अधिकारी धर्मनिरपेक्ष होते हैं, उन्होंने धर्म को जिया नहीं है, इसलिए रोज ऐसी गलतियां होंगी। हम चाहते हैं कि वहां लागू की गई प्रक्रियाओं को निरस्त किया जाए।”

संत समाज में हलचल

शंकराचार्य के इस बयान के बाद संत समाज और धार्मिक संगठनों में हलचल तेज हो गई है। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर बड़ा आंदोलन या सामूहिक निर्णय लिया जा सकता है।

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