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बिहार चुनाव: वोटर लिस्ट रिविज़न पर सुप्रीम कोर्ट ने नहीं लगाई रोक, 28 जुलाई को अगली सुनवाई

नई दिल्ली — बिहार में चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर गुरुवार को अहम सुनवाई हुई। अदालत ने निर्वाचन आयोग की इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। यानी फिलहाल बिहार में SIR प्रक्रिया जारी रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस वक्त किसी अंतरिम आदेश की जरूरत नहीं है, और मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को की जाएगी।
कोर्ट ने क्या कहा?
- सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि पहचान के लिए जरूरी दस्तावेजों की सूची सीमित नहीं है, अगर आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को भी मान लिया जाए, तो अधिकतर याचिकाओं के मूल मुद्दे हल हो सकते हैं।
- कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से सवाल भी पूछे— जैसे कि क्या यह प्रक्रिया चुनाव से पहले की तय समयसीमा में पूरी हो पाएगी और इसकी व्यावहारिकता क्या है।
याचिकाकर्ताओं की दलील
- याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह पूरी प्रक्रिया कई मौजूदा मतदाताओं को प्रभावित करेगी और समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन भी कर सकती है।
- उन्होंने यह भी तर्क दिया कि मतदाता सूची में नाम बनाए रखने के लिए 11 में से एक विशेष दस्तावेज़ अनिवार्य किया गया है, जिससे गांव और सीमांचल क्षेत्र के लाखों लोगों को कठिनाई हो रही है।
चुनाव आयोग का पक्ष
- निर्वाचन आयोग की ओर से कोर्ट को बताया गया कि पूरी प्रक्रिया की निगरानी की जा रही है, और मतदाताओं को पर्याप्त समय और सुविधा दी जा रही है।
- आयोग ने कहा कि यह कवायद वोटर लिस्ट को ‘शुद्ध’ करने के उद्देश्य से की जा रही है, ताकि गैर-नागरिक या दोहराए गए नाम हटाए जा सकें।
बैकग्राउंड: क्यों हो रहा है विरोध?
- बिहार में 7.89 करोड़ मतदाताओं में से अब तक 57% ने फॉर्म भर दिए हैं।
- ग्रामीण और सीमांचल इलाकों में जन्म प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र या ज़मीन के कागज़ात जैसे दस्तावेजों की मांग की जा रही है, जबकि शहरी इलाकों में आधार कार्ड और वोटर आईडी से काम चल रहा है।
- कई नागरिकों और विपक्षी दलों ने आरोप लगाए हैं कि यह प्रक्रिया मतदान अधिकार को सीमित कर सकती है।
आगे क्या होगा?
- 28 जुलाई को अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट यह देखेगा कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया संवैधानिक और व्यावहारिक दायरे में है या नहीं।
- अगर कोर्ट को यह प्रक्रिया असंवेदनशील या भेदभावपूर्ण लगती है, तो आयोग को दिशा-निर्देश दिए जा सकते हैं।