उत्तर प्रदेश

मायावती की रैली से बसपा को मिला संजीवनी बूस्टर, 16 अक्टूबर की बैठक में तय होगी नई रणनीति

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मुखिया मायावती की रैली में उमड़ी भारी भीड़ ने पार्टी में नई जान फूंक दी है। लंबे समय से सुस्त पड़े कार्यकर्ताओं में जोश लौटा है और प्रदेश भर में बसपा कैडर दोबारा सक्रिय हो गया है। मायावती की 9 अक्टूबर की रैली के बाद से ही पार्टी नेता गांव-गांव जाकर जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं। माना जा रहा है कि 16 अक्टूबर को होने वाली बैठक में मायावती ‘सोशल इंजीनियरिंग’ से जुड़ा बड़ा टास्क सौंप सकती हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, मायावती ने रैली के मंच से एक प्रतीकात्मक संदेश दिया था—उन्होंने अपनी कुर्सी के साथ ब्राह्मण, क्षत्रिय, पिछड़ा और मुस्लिम समाज का ‘गुलदस्ता’ सजाया था। यह इशारा साफ था कि बसपा अब फिर से अपने पुराने सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले पर लौटना चाहती है, जो सपा के पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) समीकरण की काट साबित हो सकता है।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने कहा, “बहनजी की कही बात जमीन तक पहुंचती है। रैली की भीड़ हमारे महीनों के बूथ लेवल काम का नतीजा है। हमारे नेता गांव-गांव जाकर बसपा का संदेश और फॉर्मूला समझा रहे हैं।”

पाल ने आगे कहा कि मान्यवर कांशीराम का सोशल इंजीनियरिंग मॉडल ही बसपा की असली ताकत है, और पार्टी अब उसी पर नए सिरे से फोकस करेगी। 16 अक्टूबर की बैठक में मायावती आगे की रणनीति तय करेंगी।

राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत का कहना है कि यूपी में 13 साल से सत्ता से दूर बसपा को इस रैली ने बूस्टर डोज दिया है। उनके मुताबिक, “मायावती की रैली में जुटी भीड़ ने न सिर्फ सपा, बल्कि बीजेपी की रणनीति पर भी असर डाला है।”

पार्टी सूत्रों के अनुसार, बसपा नेताओं ने मार्च से ही गांव-गांव बैठकों और सेक्टर गठन का अभियान शुरू कर दिया था। रैली में मायावती द्वारा दिखाया गया ब्राह्मण-ठाकुर-मुस्लिम-पिछड़ा एकता का गुलदस्ता आगे के विधानसभा चुनावों में पार्टी की नई दिशा तय कर सकता है।

उधर, दलित युवाओं में आकाश आनंद की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। पार्टी कार्यकर्ताओं का मानना है कि अगर मायावती और आकाश मिलकर सक्रिय अभियान चलाते हैं तो ‘बुआ-भतीजे की जोड़ी’ यूपी की राजनीति में नया समीकरण खड़ा कर सकती है।

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