उत्तर प्रदेश

पॉक्सो मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की नाराज़गी, फिर फैसला वापस

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश पर कड़ी चिंता व्यक्त की थी, जो पॉक्सो (POCSO) कानून से जुड़े मामले में दिया गया था। सर्वोच्च अदालत ने टिप्पणी की थी कि हाईकोर्ट ने आदेश देते समय “कानूनी सिद्धांतों की परवाह नहीं की।”

मामला आसिफ पाशा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के नाम से इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहा है। मेरठ की विशेष अदालत ने आसिफ को पॉक्सो कानून के तहत 4 साल की सजा सुनाई थी, जिसे उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने उनकी याचिका लंबित रखते हुए सजा रद्द करने से इनकार कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने इस आदेश को लेकर नाराज़गी जताई और कहा कि यह ऐसा मामला नहीं था जिसमें उम्रकैद जैसी सजा हो, इसलिए सजा को रद्द करने के अनुरोध पर विचार होना चाहिए था।

इसी पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज प्रशांत कुमार को आपराधिक मामलों की सुनवाई से अलग करने का आदेश भी दिया, जिस पर हाईकोर्ट के जजों ने विरोध जताया। मामला बढ़ने पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के हस्तक्षेप के बाद जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस महादेवन ने अपना आदेश वापस ले लिया।

कानूनी हलकों में यह घटनाक्रम चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि हाल के महीनों में इलाहाबाद हाईकोर्ट से जुड़े कई आदेश और जज लगातार विवादों में आ रहे हैं।

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